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१००० ]
पंचमभवि अवराइयवुत्तंतु
[९९७]
तह महा-यस तई स-चरिए हिं
पढमं पि हु विजिउ ह
तउं अवरह रक्ख यरु
इय कु इत्थ जुज्झह विहायेगु । ह हयासु वह विधाय ॥
इय तुहुँ पुइ-अलंकरणु
मज्झ विसरणु तुहुं जि तिय- वह पावक्खलणे उ ॥
तुहुँ जि पुरिस - सिरि-केउ ।
[९९८]
इय पसीउण गहिवि मणि एग
सहिय मज्झ वत्थगदेसह ।
संरोहण ओसहिि ता घरिसिय ओसहिहिं रसिण जलि ओहलिय- रयणंह ॥ खग्ग-पहारु स-करयलिण सुंदर परिसिंचेसु ।
ता सज्जीकय विग्गहह
महु पुट्ठि करु दे ||
[९९९]
तयणु पत्थण-भंग-भय-भीरु
सरणागय- जियहं निरवज्ज - वज्ज -पंजरु संहाविण ।
मणि ओसहिहे - जुयलु करि घरिवि कुणइ तह तसु खणदिण ॥ तयणु अ-लग्ग-पहारह व सज्जीहु-देह |
अभउ पयच्छिवि कुमरु गय- वइयरु पुच्छइ तस्सु ॥
[१००० ]
अह पर्यपइ इयरु - नर-रयण
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अ-कहियव्वु नंत्थित्थ किंचि-वि ।
नय वच्छल तुह पुरउ ता निसुणसु पसिय निय- हियय-पसरु इग ठाणि संचिवि ॥ जह वेयड्ढ - महागिरिहिं उत्तर - सेढिहिं रम्मि ।
पयड - नामि रहनेउरय- चक्कवाल- नयरम्मिं ॥
९९७. ७. क. वि जि; ९. क. लक्खलणे. ९९९. ७. क. देहुस्सु. १०००. ७. क. नामि,
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