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हरिनंदि-नरवइ- सुइण ता वरिसइ आयरिण कुमरु वि पात्रं पित्र तविण इय चिरु जुज्झर्हि वहु-विहिहिं
नेसिनाहचरिउ
[९९३]
किं तु दुज्जण - नेहबंध व्व
नाग-पास तोडिय खणद्विण । कुमर-उवरि रिउ वाण वरिसिण || खंडइ खग्गिण वाण । दु-वि गुरु- कोह-निहाण ||
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एत्थ - अंतरि तेसिं राहं
दोहं पि हु समस्-भर- जणिय- गरुय को ऊहलं पिव । अलोइका रवि उदिउ तयणु तणुयंगि- दुहमिव ॥ गलिउ समग्गु वितिमिर-भरु फुरिउ दिणिंद-पयाउ । ता करवाणि अरिहि उरि कुमरु पयच्छई घाउ ॥
[९९५]
कह-वि तह जह गलिय- चेयन्तु रिउ महि-यलि पडिउ अह उवयरिउण बहु-विहिहिं तयणु पपिउ - अरि सुहड मम मई दिउ उद्विउण
निय करेहिं तिण कुमर - रयणिण । विहिउ झत्ति पच्चल सरीरिण || गिन्हसु असि हत्थे । वयसि तिर्हि जि वत्थे ॥
[९९६]
अवि य न मुयहिं सुहड रिउ भइण
सोडीरिम परिय वि इय निणित्रि तह तरुणिपच्छुत्ताव-दवानलिण
भइ विक्कि नर-रयणु हउं कय- पाव - पर्संगु ॥
जाव जीवु निवसइ सरीरि वि । विसय-विहिय- अवराह सुमरिवि ॥ परिडज्झिर - सव्वंगु ।
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