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________________ २५० हरिनंदि-नरवइ- सुइण ता वरिसइ आयरिण कुमरु वि पात्रं पित्र तविण इय चिरु जुज्झर्हि वहु-विहिहिं नेसिनाहचरिउ [९९३] किं तु दुज्जण - नेहबंध व्व नाग-पास तोडिय खणद्विण । कुमर-उवरि रिउ वाण वरिसिण || खंडइ खग्गिण वाण । दु-वि गुरु- कोह-निहाण || Jain Education International 2010_05 [९९४] एत्थ - अंतरि तेसिं राहं दोहं पि हु समस्-भर- जणिय- गरुय को ऊहलं पिव । अलोइका रवि उदिउ तयणु तणुयंगि- दुहमिव ॥ गलिउ समग्गु वितिमिर-भरु फुरिउ दिणिंद-पयाउ । ता करवाणि अरिहि उरि कुमरु पयच्छई घाउ ॥ [९९५] कह-वि तह जह गलिय- चेयन्तु रिउ महि-यलि पडिउ अह उवयरिउण बहु-विहिहिं तयणु पपिउ - अरि सुहड मम मई दिउ उद्विउण निय करेहिं तिण कुमर - रयणिण । विहिउ झत्ति पच्चल सरीरिण || गिन्हसु असि हत्थे । वयसि तिर्हि जि वत्थे ॥ [९९६] अवि य न मुयहिं सुहड रिउ भइण सोडीरिम परिय वि इय निणित्रि तह तरुणिपच्छुत्ताव-दवानलिण भइ विक्कि नर-रयणु हउं कय- पाव - पर्संगु ॥ जाव जीवु निवसइ सरीरि वि । विसय-विहिय- अवराह सुमरिवि ॥ परिडज्झिर - सव्वंगु । For Private & Personal Use Only [ ९९३ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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