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पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
[९८९]
सरिउ ससहर-चारु-वयणाए निय-
इठु-एईए लहु आगओ य तुहुँ पुणु पयत्तिण । सुरु खयरु व नरवइ व अस्थि को वि जइ सहिउ सत्तिण ॥ ता सुमरसु सव्वप्पण वि न उण विछुट्टसि अज्जु । धुवु मत्थइ पडिहइ तुह जि इहु निय-दुक्कय-वज्जु ॥
[९९०]
अहव संपइ होउ मह सुमुहु तरवारि कर-यलि कलिवि किंपि किंपि माहप्पु पयडिवि । अप्पाणु पयासि मह पुरउ रमणि-वहि चित्तु विहडिवि । ता इयरिण वज्जरिउ - नणु एज्ज एज्ज एमेव । दलिवि मडप्फरु सयलु जिह तहिं जि करावडं सेव ॥
[९९१] ___ इय-पयंपिर दो-वि साडोवु आयइदिवि असि-लइय भिडहिं सुहड दढ-दह-उट्ठय । खणु बग्गाहिं अ-क्खुहिय खणु पहारु सज्जति दुट्ठय ॥ नउ अक्कमहिं परुप्परिण वंचिय-खग्ग-पहार । ता वाहुहुँ जुज्झिण भिडहिं दु-वि ति परक्कम-सार ॥
[९९२]
तयणु टालहि उवहिं संगहहिं आवीडहिं निद्दलहिं . संधि-बंध सव्वंगुवंगह । अह केण-वि विहि-वसिण वाहु-जुयलु तसु कुमर-चंगह ॥ सयल-सरीर-दुहावहिण नाग-पास-वंधेण । निविड निवद्ध विवक्खिइण तिण अ-सच्च-संधेण ॥
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