________________
IC
पंचममपि मरायवुत्तंतु
[९८१] तसु पसीयम् पाणि-गहणेण तयणंतरु कुमर-वरु नियइ वयणु सुहि-विमलवोहह । ता मित्तु समुल्लबइ कुमर-रयण तुह जणय-सरिसह ।। एयह विस्संभर-पहुहु वयणु न लंघिउ जुत्तु । तापडिवज्जसु दुक्करु वि सचिवाहिविण ज वुत्तु ।
[९८२]
नणु वियाणसि उचिउ तुहुं मित्त किमु पत्थुय-अस्थि हउं सचिव-पुरउ उत्तरु पयच्छउँ । ता कुमरह मुणिवि मणु भणिउ मुहिण - नणु सचिव इह हउं । कुमरु अणिच्छंतु वि कह-वि भणिवि पयट्टावेसु । इय वंछिय-सिद्धिण वसुह- पहु तुहूं बद्धावेसु ॥
[९८३]
तयणु दु-गुणिय-हरिस-प-भारु सचिवाहिवु निव-पुरउ विण्णवेइ जइ-भणिय-वइयरु । नर-नाहु वि अइ-गरुय- वित्थरेण संपत्त-अक्सरु ॥ सिरि-अवराजिय-कुमर-वर- कणयस्सिरि-कन्नाई । कारावइ पाणिग्गहणु उदिओदिय-पुन्नाहं ॥
[९८४]
देस-दसण-विसब-पसरंतकोऊहल-तरलिओ वि घरणि-नाह-कय-गुरु-निबंधिण । परिथक्कउ कित्तिय वि दियह तहिं कि सह तिण पुरंषिण । अन्नम्मि उ अवसरि निसिहि परिवंचिय-परिवारु । मित्त वि इक्क वि नीहरिउ सो नरनाह-कमारु ।।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org