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पंचमभवि अक्षराइयवृत्तंतु
इय मुरारि. व जनहि-लीलाए आलोडइ स-भुय-वल- वसिण सयलु पडिवक्खु अइरिण । ता अप्पह रक्स करि देव एण्हि पज्जत्तु चोरिण ॥ इय निसुणेवि नराहिवइ वंदिहि वयषु अउव्वु । परिचिंतइ धिसि घिसि पढिउ इमिण किमेरिसु कव्वु ॥
[९६६] एल्थ-अंतरि वि मय-गय-कलह परिगलिय-पक्खर-तुरय हय-मरट्ट भड भग्ग-संदण। समुवागय नरवइहिं
पयह पुरउ हुय-माण-खंडण ।। ता निव-पवरिहिं भणिउ -तिण नर-रपणेण अ-संकु । लीलई दलिय-मडप्फरहं अम्हहं कयउ कलंकु ।।
[९६७]
ता विसेसिण फुरिय-गुरु-रोसु वसुहाहिवु तक्खणिण पउर-चारु-चउरंग-सेन्निण । आऊरिय-धर-विवरु चलिउ तयणु हरिनंदि-तणइण ॥ अहह नियच्छह पेच्छणउं मह आवडिउ मुहाए । इय चिंतिवि धवले वि धर- वलउ स-कित्ति-सुहाए ।
[९६८]
ददु पर-बलु अ-मिय-पसरंतभय वेविर-तणु-लइउ विमलवोहु एगम्मि ठाविवि । निय-कर-यलि धरिवि करवाल-लइय स-पयाबु दाविवि ॥ जुझंतिण तिण वहु-विहिहि निहणिय-आरोहस्सु । करण-विसेसिण आरुहिवि करिहि खंधि एगस्सु ॥ ९६५. ८. क. पडिठ.
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