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मिनाहापारिज [९६१]
कुणह किं पुण मरिह सम्वे वि इहु मग्गिर मह पुरउ हढिण नूण ता वयह निय-घरि । ढक्केविणु कन्न एहु रक्खियब्यु तक्करु वि मइं परि ॥ जं निय-कज्ज-परम्मुह वि सम्मुह पर-कज्जम्मि । हौति सहाविण सप्पुरिस निय-वलि निरवज्जम्मि ॥
[९६२]
इय पयंपिरु कुमरु साडोवु आरक्खिय-माणविहिं गहिय-असिहि चउ-दिसिहि वेदिउ । ता विरुइण पसु-गणु व रिउ-समूहु तक्खणि विहंडिउ ॥ एगेण वि कुमरेण कर- कय-तरवारि-लएण । तयणु सु कोसल-पुर-निविण निसुणिय-वुत्तं तेण ।।
[९६३] फुरिय-कोविण विविह-करि-तुरयरह-सुहडाइण्ण-धर- विवरु पउरु निय-सेन्नु पेसिउ । खण-मेत्तिण तं पि तिण करि-घड व्व सीहिण पणासिउ ।। तयणु नराहिवु मागहिण एगयरिण विष्णत्तु । जह पहु को वि अउव्वु भड नयरुज्जाणि पहुत्तु ॥
[९६४]
एण्हि एगह पुरिस-मेत्तस्सु सरणम्मि समागयह कज्जि गरुय-पसरंत-मच्छरु । आभिट्टई गय-घडहं हणइ सुहड विहडेइ रह-भर ॥ फोडइ उरई तुरंगमहं माणु मलइ रहियाहं । एगो च्चिय सय-सहस-गुणु दीसइ मज्झि भडाई ॥
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