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नेमिनाहचरिउ [९५३]
ताव दिसि दिसि नयण निक्खिविरु परिकंपिर-कर-चरणु वयण-कुहर-विणिवेसियंगुलि । पहु रक्खहु पसिय मई तुम्ह पुरउ एह वद्ध अंजलि ॥ इय विलविरु दूरह पहह नियय-कम्म-आइछ । धाविप्पिणु नरु एगु तसु कुमरह सरणि पविठु ॥
[९५४]
अह पयंपइ कुमरु – अरि भद्द मा भाहि कयंतह वि वेल मज्झ धुवु तुज्झ संतिय । एत्थंतरि धुणिय-सिरु विमलवोहु पभणइ-असंतिय ॥ मा करि कुमर पइण्ण इह ज न नज्जइ कु-वि एहु । कत्तु वि कह वि समागयउ नयहं कु-नयहं व गेहु ॥
[९५५]
ईसि विहसिवि कुमरु बज्जरइ मा जंपसु मित्त एहु जं सयं पि नयवंत रक्खिय । सरणम्मि उ मु-पुरिसहं विसहि ते ज्जि जे कु-नय-दुक्खिय ॥ इय दुहियहं सरणागयहं विहलिय-माण-धणाहं । कज्जि जि न तुलहि नित्तुलउं ते गणि मज्झि मुयाहं ।।
[९५६]
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इय भणंतहं तेसि तिहं पि उक्खाय-खग्गुग्ग-कर भीम-भीउडि-भासुर-निहालय । परिधाविर सेस-नर अरुण-नेत्त नं अंत-कालय ।। अरि अरि हण हण गहि-न गहि केसिहि इय जंत । सिरि-कोसल-पुर-नरवइहि वहु-विह सुहड पहुत्त ।
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