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पंचमभनि अवराइयवृत्तंतु
[९४९] __ अवि य न मुणइ लोय-आयारु न वियाणइ कज्ज-विहि. देस-हास परिहरइ दुरिण । होलिज्जइ दुज्जणिहिं धुत्त-सएहि वंचियइ. अइरिण । तह स-हाणि निविट्ठ मिग- मसग-काग-काउरिस । मरहिं अ-पाविय-स-जिय-फल न उण एम्ब सप्पुरिस ॥
[९५०]
तावहारु वि अम्ह अणुकूल इहु इयर इहरह उ निविड-नेह न वि जणय-जणणिय । अणुमन्नहिं कह-वि इय इच्छ-माणि परियडहुं धरणिय ॥ अणणुण्णायहं सु-पुरिसहं पुणु जणणी-जणएहिं । न गुणावहउ वि एस गम भणियउ नय-निउणेहिं ॥
[९५१]
तयणु पसरिय-हरिस-रोमंचु भणियव्व-वियक्खणउ विमलवोहु पभणइ - महा-यस । गुण-दोस वि सयल तई कहिय सम्मु सु-विवेय-माणस ॥ ता सच्चत्थ वि नर-रयण तुब्मि जि मज्झ पमाण । इय अक्कमह समग्ग धर रयणायर-अवसाण ॥
[९५२]
इय पयंपिर गलिर-परिखेय खणु एगु अइक्कमिवि चलिय कलिय-निम्मल-विवेइण । गच्छंत य पत्त पुर- विवणि कह-वि स-कयाणुहाविण ॥ तत्थ य पउम-सरोवरह एगह तीरि पहिह । आलोडिय-सरवर-सलिल चिट्ठहिं जाव निविट्ठ ॥
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