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पंचमभवि अवराइयवुत्तंतु
*[९३३] सिहरि-कंदरि कप्प-विड वि व्य सिय-पक्खि कुमुइणि-पहु व अइरिणावि विग्घिण विवज्जिउ । मुहि-सयण-मणोरहिहिं समगु विमल-गुण-रयण-सज्जिउ ।। दिढउ पणयहं छियरु (2)[लच्छियरु]तम-पब्भारु हरंतु ।
xxxx [९३४]
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xx विहिं निलीणउ । पउमासणु जस्सु गुण- गहण-मणु व हुउ चउर-वयणउ॥ जसु तणु-रूवु निरिक्खिउ व सहस-नयणु तियसिंदु । हुउ जसु गुण-जंपण-मणु व सहस-जीहु नागिंदु ॥
[९३५] जस्सु जोव्वण-भर-कुढारेण सव्वंगु वि ताडिय उ अवल हूय कामिणि वराइय । जसु विक्कम-निज्जिय व हरि-किसोर काणणि भमाडिय ॥ जसु गंभीरिम-अहरिउ व जलहि जडत्तु पवन्नु । तसु तरुणत्तणि धरणि-यल- तिलयह तुलइ कु अन्नु ॥
इय समग्गहें गुणह आहारु परियाणिवि कुमर-वरु तुट्ठ-मणिण मेइणि-मयंकिण । जुव-रजिज निवेसियउ सु-प्पसत्थि वासरि अ-संकिण ॥ अह अवराजिय-जुव-निवइ पसरिय-सुकय-सहावु । पायडिहूयउ महि-वलइ दुगुणिय-नियय-पयावु ॥
* The fist line of the दुहा of 933 is partly readable, but the last line of 933 and the first three lines of 934 are blurred and illegible in क. Except the final दुहा of 934, the portion blurred in # is not found at all in . Thus the text of the portion from 933 to 937 is mostly blurred and illegible in क.
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