________________
२३३
९२८]
पंचमभवि अवराइयवृत्तंतु
[९२५] गम्भ-जोगिण धरणि-वलयम्मि सव्वत्थ वि अक्खलिय- कित्ति-पसरु दिपंत-पोरिसु । हरिनंदि-धरणिप्पहु वि हुयउ तम्मि समय म्मि असरिसु ॥ अह सु विचिंतइ - नणु जु मह होसइ गुण-मणि-धाम । नंदणु वियरेयव्वु मई तमु अवराजिय-नामु ॥
[९२६] __इय विचिंतिरु कुणइ नरनाहु पियदंसण-दोहलय- पूरणाइ-कायच-वित्थरु । देवी वि अ-विग्ध निय- सुकय-वसिण संपत्त-अवसरु । पुव्व-दिसि व्व दिणाहिवइ वित्थरंत-गुरु-तेउ । उप्पायइ नंदण-रयणु सयल-धरह सिरि-हेउ ॥
[९२७] ___ अह पियंवय-नाम निव-दासि गुरु-हरिस-ल्हसिय-निय- उत्तरीय-वावडय-करयल । परिकंपिर-थोर-थण- वेग-गलिय-निय-सणय-अंचल ॥ गरुयाणंदिण परिखलिर- अक्खर-वयण-निवेस । पुरउ गंतु वसुहाहिवह सिर-विरइय-कर-कोस ॥
[९२८] भणइ जइ - पहु पढम-दियहे वि सव्वंग-समुल्लसिय- तेय-पसर-परिविजिय-तरणिण । निय-वंस-मुत्तामणिण सु-प्पसत्थ-लक्खण-निहाणिण ॥ अहुणुप्पन्निण धरणि-यल- जण-आणंद-यरेण । वद्धाविज्जसि देव तुहं निय-नंदण-रयणेण ॥ ९२८. ७. क. ख. याणद..
३.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org