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९२०]
पंचमभवि अवराइयवुत्तंतु
[९१७]
दलिवि पर-बलु तुरय गंजेवि भंजेविणु करडि-घड हणिवि सुहड रह-रयण विहडिवि । परिगेण्हिवि वत्थु-सिरि कित्ति-कंत दह-दिहि भमाडिवि ॥ वियसिय-लोयण-कमल-दलु पुलइय-अंगोवंगु । नियइ पुरिसु इगु सुर-सरिसु समहिडिय-उच्छंगु ॥
[९१८]
तयणु उट्ठिवि विहिय-कर-कोसु पियदंसण निय-पियह पुरउ होउ निय-सिविणु स-हरिसु । परिसाहइ निविण अह पयडिऊण संतोस-पगरिसु ॥ भणिउ-देवि तुह सुय-रयणु कु-वि रिउ-कुल-सिर-सूलु । होसइ वसुह-सिरो-रयणु विमल-गुणावलि-मूलु ॥
[९१९]
सिविण-दसण-समय-सम-कालु पुणु देविहि चित्तगइ. सुरु महिंद-सग्गह चवेविणु । अवइण्णउ तणु-कमलि सुइर-विहिय-सुकयाणि लेविण ॥ ता स-वि सेसिण तुह-मण दो वि ति निय-देवीउ । चिट्ठहिं धम्मिय-कम्म-कह-कहण-निवद्ध-रईउ ।
[९२०]
अह पहाउय-तूर-निग्घोस पडिवोहिउ धरणिवइ विहिय-गोस-कायव्व-वित्थरु । अत्थाण-मंडबि कमिण उवविसेवि गुरु-हरिस-सुंदरु ।। सुविण-वियाणय पुरिस तहिं सदावइ तुरंतु । ति वि उचियासणि उवविसहिं स-हलहत्थ आगंतु ॥ ९१९. ३. क. सुर.
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