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तश्यवि चित्तगइवुत्तंतु [९११]
किं व वहुइण वयण-वित्थरिण नीसेस वि समण-जण- उचिय-किरिय चिरु कालु पालिवि । पुवज्जिउ सुह-मणिण पाव-कम्मु लहु निरुवले विवि ।। पज्जंति य कय-सयल-विहि आउ-कम्म-अवसाणि । उप्पन्नउ माहिंद-सुर- मंदिरि पवर-विमाणि ।।
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तियस-भाविण इंद सम-रिद्धि कम-जोगिण कय-सुकय रयणवइ वि ति वि दो वि बंधव । उप्पन्न तियसत्तणिण धणिउ भमर-हिय-सुरहि गंध व ॥ तयणु ति तत्थ वि पुव्व-भव- संचिय-दढ-पडिबंध । चिट्ठहिं परिकीलिर सुइरु अकय-विओय-निबंध ॥
॥छ। इति श्रीश्रीचंद्रसरि-क्रम-कमल-भसल-श्रीहरिभद्र-सूरिविरचित-श्रीनेमिनाथचरिते श्रीमन्ने मिजिनराजिमत्योचित्रगति-रत्नवती-वक्तव्यतानुगतो द्वितीयो मनुज
भवः सुरभवः चतुर्थः समाप्त इति ।
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