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९०६ ]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[९०३]
चयहिं के वि हुकमिण पत्ता वि
रज्ज-स्सिरि तिण-लहु व अ-लहंतय भव- गहणि लद्ध वि असइ महेल इव इय घड - दासि - सरिच्छियहिं
निय - द यह पर - पुरिसि एसा उण रज्ज - सिरि रयणाय रुवि परिच्चइवि इय कुस-कण्णु अणत्थ-यर
[९०४]
माण धणु नरु वयण
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के-त्रि पर संतिय विपत्थई । महिं सहहिं बहु विहई दुत्थई । परिकील इयरंमि । रमइ कु रज्ज-सिरिम्मि ॥
संसार - विरत-मणनीसेस - कला - निलउ संपाविय तारुण्ण भरु ठवियउ गरुयर - वित्थरिण
-मेत्ते वि
भीम - भिउडि ईसाई तक्खणि । नर-सहस्स - सेविय नि-लक्खणि ॥ लोह-द्वाणि वसे । मणिण वि एहहि लसे ||
[९०५ ]
इय विचितिवि सुइरु खयरिंदु
पसरु रणव- देवि-नंदणु । सयल-सयण- सुहि-हियय - रंजणु ॥ गुरु-गुण-गण-मणि-धामु | रज्जि पुरंदर-नामु ॥
[९०६]
तणु विरवि गरुय - सक्कारु
जिण सास-यहं
वसुह-चलइ सयलहं विभत्तिण । संमाणु करेवि तह सयल - समण - संग्रह स-सत्तिण ॥ अणुजाणाविवि सुहि-सयण परियणु संभासेवि । निम्मलु निय-जस - पसरुजगि सयलंमि वि पयडेवि ॥
९०२. ३, क. थिरु हुय
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