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नेमिनाहचरिउ
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[८९९]
ता वि भइउण रज्जु वियरेवि तहं दोण्ह वि नहयरहं कमिण देइ अणुसहि वहु-विड । नणु जीविउ अथिरु तह पत्त केण सह रज्ज-सिरि इह ॥ इय चिंतिवि निय-निय-गिहिहि पमुइय-मण चिट्ठह । किण किण पुरिसिण पंच-दिण पएहि न महि घटेह ॥
[९००]
खयर-पहु अह गयउ स-ट्टाणि ससि-सूर वि दो वि गय निय-निएसु ठाणेसु उद्विवि। परमंतर-दुह-पहु
गिहिवि गय य न मेलहि दिदि वि ॥ विहिहि वसेण उ इयर-दिणि इग-रज्ज-ट्ठिय दो वि।। तिंव जुज्झिवि मय जेम्व तहं सार वि करइ न को वि ॥
[९०१]
धणु विलुत्तउं सयलु पुणु ताहं पर-पक्खिय-नरवइहिं
तयणु चित्तगइ एहु वइयरु । निमुणेविणु झत्ति भव- भाव-विमुह हुय हियय-गोयरु ॥ चिंतइ-धिसि धिसि भुवण-रिउ- मोह-निहय-हिययाहं । चरियं सुयण दुहावहइ
भव-निवडंत-जियाहं ॥
[९०२]
केण सह गय रज्ज-सिरि एह सह केण समागय व कसु व भवणि जा-जीवु थिरिहुय । जसु कज्जिण कुणहिं नर पाव-किरिय अ-विवेय-संभुय ।। वंचहिं पहु निहणहिं जणउ आणहि कुलह कलंकु । चिणहिं पातु अविहिण मरहिं भमहिं भवमि अ-संकु ॥
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