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८९८ ]
तइयभावि चित्तगइवुत्तंतु
[८९५]
एत्थ-अंतरि सोय-विहुरेण वाहुल्ल-लोयण-जुइण फुरिय-गरुय-संताव-पसरिण । विण्णत्तउ चित्तगइ. चक्कवट्टि एगेण खयरिण ॥ जह पहु जो तुह सेव-करु मणिण वि अविहिय-कूड । आसि पसिद्धउ खयर-वइ अभिहाणिण मणिचूडु ।
[८९६]
दइय-संगह चंचलत्तण अ-थिरत्तिण जोवणह सिरिहि सरय-घण-संनिहत्तिण । दुहियत्तिण परियणह जियह सलिल-लव-चवल-गत्तिण ॥ अवडिय-घडण-सरूवयह सुघडण-विघडणयस्सु । विहिहि निओइण सो हुयउ अतिहि कयंत-घरस्सु ॥
[८९७]
संति तमु पुणु सूर-ससि-नाम दो नंदण अ-सुय-गुरु- जणय-वयण सु-विवेय-वज्जिय । अह मह-मिगयाए पिउ- रज्ज-गहण-मण जुज्झ-सज्जिय ॥ सन्नाहिय-निय-निय-कडय रण-रंगमि पविट्ठ । चिट्ठहिं एत्तो च्चिय सविहि मई एण्हि चिय दिट्ट ॥
तयणु धिसि घिसि विसय-लुद्धाहं जीवाहं वि चिट्ठियइं हइय हइय इय कम्म-परिणइ । तक्खणि वि जं पिउ-मरणि हृय ताह एरिसय दुम्मइ ॥ इय चिंतंतउ चित्तगइ निमुणिवि तहं वुत्तंतु । तसु ठाणह दु वि वाहरइ अप्पुणु पुरउ तुरंतु ॥
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