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नेमिनाहचरिउ
[८९१] तसु वि माणस-सरह सविहं मि जिण-सासय-चेइयह भुवण-नाह-साहिय-विहाणिण । अहिणंदण-पूयणहं हेउ गहिय सक्कारु पाणिण ॥ सासय-जिण-मंदिरि गयउ पसरिय-गुरु-रोमंचु तिन्नि निसीहय पमुह दह तियगिहि विहिय-सुसंचु ॥
[८९२] तयणु भत्तिण जणिय-सक्कारु काराविय-नट्ट-विहि विहिय-पडिम मज्जण-महूसवु । वियतंत-मुहंदुरुहु गहिवि कुसुम-भरु पसरियासवु ॥ सव्वासि पि हु सासयह जिण-सामिहिं पडिमाहं । पूय करेविणु थुइ करइ सयणहं निसुणताहं ॥
[८९३] भुवण-सामिय उसह-जिण-इंद चंदाणण चंद-सम- कित्ति-पसर-धवलिय-दियंतर । असरण्ण-तिहुयण-सरण वारिसेण जय-नाह जिण-वर ॥ परिवढिर-नीसेस-गुण वद्धमाण जिण-नाह । नियरसु पसि उण मज्झ सिरि का चि हु विगयावाह ॥
[८९४] इय थुणेविणु भुवण-दिणइंद ते सासय जिण-वसह हरिस-फुरिय-वियसंत-लोयणु । उचियासणि उवविसिवि कुणइ पंच नवकार-सुमरणु ॥ तयणतरु जिण-मंदिरह पुरउ असोय-तरुस्सु । तलि उवविसिवि निवइ कुणइ सुद्धि स-परिवारस्सु ।
८८८. Between stanzas 888 and 891 there is a lacuna of two stanzas in क. and ख.
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