________________
४२]
पढमभवि धणवुत्तंतु
[३९] तह पवट्टहिं पउर-जिंभाउ नीसास वहलीहवहिं गलइ तिवलि अरुइ वि विसदृइ । परिसिढिलहिं सयल-तणु- संघि-बंध उज्जमु न वइ । उयर-नियंव पवित्थरहिं लज्ज सुमंसलिहोइ। गब्भ-घसिण देविहिं तणिय आण न खंडइ कोई ॥
एवमइगय तीए नव मास अद्धट्टम-दिण-अहिय अह पसत्थ-वासर-मुहुत्तिण । उच्च-ट्ठिय-सोम-गह दिहि लग्गि बहु-सुकय-पत्तिण । रवि-रयणीयर-मंडलिहिं परिवढिर-तेएहिं । महियल-लोय-मणोरहिहिं संपाविय-पसरेहिं ॥
[४१] जणइ धारिणि देवि उदयदिवसुह व्च तेयन्भहिउ तणय-रयणु दिणनाह-सच्छहु । अह सुललिय दासि लहु तहिं पहुत्त जंपइ य पेच्छहु । पढम-दिणं मि वि नंदणह का वि सरीरह कंति । जं पेक्खिवि तियसासुर वि पसरिय-विम्हय हुंति ॥
[४२] ता निजिवि सुइ-कम्मंमि तयहिण-बहुविह-महिल कुमर-वयण-दंसणिण तुट्ठिय । सयमसरिस-वेग-भर- परिगलंत-उत्तरिय उहिय । गंतु नरिंदह पय-पुरउ भणइ भुवण-सुहएण वद्धाविज्जसि देव तुहुं तणय-रयण-जम्मेण ॥ ३९. ७. सुमिसलि. ४१. ३. रय left out, ४२. ४. रेवगभर. ५. पेरगलंत. ६. परंयपुरउ.
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org