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तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[८७७] हे-यल-अहिय-सोहग्गु
सयल - महि-
गंध-विवाह वि ताउ तरुणि परिणेइ सव्व वि । तयतरु ताहिं सह कुणइ पंच-विह विसय-सेव वि ॥ जिम्वतियसाहिबु सुर-भवणि अच्छर- नियर सहाउ । तिम्व तहं दइयहं मज्झि ठिउ सहइ सु नहयर-राउ ॥
८८०]
[८७८ ]
तयणु परियणु सयल साणंदु
अनोन्नई मुह-कमल
अरि पेक्ख पेक्खह य दिठु जु रामिण सिविणुलउं तं फलियउं भरहस्सु | एहु जु जंपर सलु जणु तं फुड हुयउं अवस्सु ||
सच्चवंतु पुणु पुणु पयंपइ | तुमि धरिवि मणु ठाणि संपइ ॥
[८७९]
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अह गहेविणु ताउ तरुणीउ पुव्वज्जिय-सुकय वस उल्लसंत - सविसेस-जय-सिरि । सिरि-सूरतेयं गरुहु पत्तु खणिण वेयइट - गिरि-वरि ।। इय जुजु कु वि महियल - वलइ जाय रयण-विसेसु । सुसु सु अ-पत्थिवि लहु लहु संपडइ असे ||
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निय - सार - परियण - सहिउ सव्वंगु विकरिवि लहु नंदण-वणि खणु की लिउण नहर-पहु सिरि-चित्तगइ
८७९. १. क. तरुणीओ.
[८८०]
अन अवसर गिम्ह- समयंमि
गहिय-रणवइ-पमुह पिययमु । समय- उचिउ सिंगारु निरुवम् ॥ गिम्हायत्र- संतत्तु माणस - सरि संपत्तु ॥
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