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८६४]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[८६१]
गल्ल-विवरहं गलिर-रुहिरोहु मुह-कुहरह नीहरिय- जीह-दीह-काइय-विहीसणु । फुटुंत-कवाल-तल- गलिर-कीकस-दुहावणु ॥ अवलोइय-निय-दुन्धिणय- पायव-फल-पब्भारु । हुयउ हयासु अणंगरइ पयडिय-जमहर-सारु ॥
[८६२]
अह सहोयर-मरण-पसरंतरोसारुण-लोयणहि एगिहोउ भइणिहिं दुवेहिं वि । निय-विज्जा-वलिण तमु उवरि गरुउ गिरि-खंड खेविवि ॥ खयर-कुमारु रविप्पहु सु तह किउ जह अइरेण । गरुय-पहारिण जज्जरिउ परिचत्तउ जीएण ॥
[८६३]
तयणु पिययमु काउ उच्छंगि कुल-वालिय सीलमइ लहु पविट्ठ चिय-मज्झि एयह । इयरो वि विलासवइ- कंतिमइहिं भइणीहिं इयरहं ॥ चियहं निहित्तउ ताउ पुणु पुरिस-रयण एहि अम्हि । . अनियंतिउ गइ अन्नहहिं चियहं पडिउकामम्हि ॥
[८६४
इय सुणेविणु अहह संसारि विसयाउर-माणसहं जियहं कम्म-परिणामु दारुणु । जं एरिसु मरणु तहं तारिसह वि भव-भमण-कारणु ॥ अह वा कम्म-वसेण जिय सय-सहस्स-संखाई। असरण सहहिं सरीर-मण- वयणुब्भव-दुक्खाई ॥
८६२. This stanza is added marginally in क. in ख. this and the follwing stanza bear the same number.
८६२. ३. क. एगिहोइ उइणिहि दुवेहि; ५. क. गुरु; ६. क. कुमार. ८६३. ५. क. सइणिहिं
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