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तइयभवि चित्तगइवुततु
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[८५३]
ता विमुंचसु एहु असग्गाहु पच्चक्ख-अणत्थ-फलु उभय-लोय-संहार-कारणु । अह भणइ अणंगरइ-. हउं जि इमह दुविणय-वारणु । ता अवसरिउण कंचि खणु दो वि हु तुब्भि रहेह । जेण सुसिक्खिय एह चिय भाउज्जाय निएह ॥
[८५४]
अह तह च्चिय ताहि विहियमि कुमरेण हवेउ रहि कहवि वाल करयलि घरेप्पिणु । अणुकूल-चाडुय-पणय- निठुरेहिं वयणि हि भणिप्पिणु ॥ पत्थुय-अत्थ-पडुच्चरणि थुक्कंति पुणरुत्तु । समुहु वि अनियंती हढिण तिण पारद्धिय भोत्तु ॥
[८५५]. एत्थ-अंतरि विहि-निओएण निरु अहम-दियहि परि- भमिरु नयर-गिरि-काणणाइसु । सों चेव य सीलवइ- दइउ पत्तु उवरिमए एसिसु ॥ तयणु हयासिण तेण तह हढिण वि उवभुज्जंत । अवलोइय रविपहिण निय- दइय करुणु विलवंत ॥
तयणु फिड फिडु अरि दुरायार किह गच्छसि दिठु मइं उट्ठि उहि करवालु गेण्हसु । मा जंपसि किं मन मह कहिउ किं-पि पुव्वं पि एरिसु ॥ हउं पुणु बहु-दुन्नय-परह चिर-संचिय-पावस्सु । तुब्भ सरीरिण दिसिहि वलि अज्जु करेसु अक्स्सु ॥ ८५५. ३. क. काणणायसु
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