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[८४९ ] तयणु कुमरिण अणिय भइणीउ जह-कह - मवि तह जयह जेण एय मई तरुणि मन्नइ |
उवरोहण वंधवह सुंदरि चयसु विसाय-भरु जं जोव्वण- लायण्ण-चर
अवि य ॥
नेमिवाहचरिउ
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इयरीए समुल्लविउ- हल्लि हल्लि किं एम्व जंपह । जय - गरुयउ खरउ खरु ता कि उचिउ सीहिणिहि संगह | अहवा नहयर - राय -कुल- गरुय-कलंक- करस्सु ॥ यि भइणय मई सरिस कि न चिट्ठहिं एयस्सु ||
[८५१]
तयणु वाहिं सा वाल भण्णइ !! भुंजसु विसय-सुहाई । रूवई जगि दुलहाई !!
[ ८५० ]
अह थुडुकिय-वयण-कमलाए
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सुइर-संचिय-सील- रयणस्सृ
जइ भंगु करेमि हउं
ता अयल-पुर-पहुहु तह नहर - कुल-मंडमह
खयर- कुमार- सिरोमणिहि गुणरवि पहह पियस्सु ॥
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कय-कलंक-सुगुरुन एसह 1 पिउहु मज्झ ससिवेग-नामह !! ससुरह रविवेगस्सु ।
[८५२]
नूण वियरहुं वयणि मसि कुच्चु
तह सीलवइ त्ति नियनामु नेउ पायालि बोलउं । ता एरिसु मह पुरउ मन भणेह पुणु वयणु भोलउं । तयणु ति दो वि अनंगरइ - पुरउ भणहिं स-विसाय | एइण जलिण न वफहईं एहि मुग कहमवि भाय ॥
८४८. is missing in क. ख. ८४९. १. क. भइणीभो.
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