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८४७]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
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[८४४]
सुयणु नीहरि कयलि-भुवणाउ परिहासह न खमु हउं एयमित्त वक्करु न सुंदरु । सम-सुह-दुहि तुह विरहि सरणु मज्झ होइहइ जमहरु ॥ इय विलवंतउ सरवरहं तडि हिं स-विवु नियंतु । एहि एहि ससि-वयणि इय भणइ जलंमि विसंतु ॥
[८४५]
इय निरंतर विविह-चेढाहिं वण-देवय-खयर-कुल- देवयाहं नामई सरंतउ । अइवाहइ सत्त दिण तत्थ तत्थ एहु परियडंतउ ।। तइयहं सो वि अणंगरइ वरहिहि रूवु चएवि । तह तह विळवंतिय हढिण सा पसयच्छि हरेवि ॥
[८४६]
पत्तु गयणिण एत्थ धवलहरि ता वियसिय-मुह-कमलु उवविसेवि एगति जंपइ । मिग-लोयणि ससि-चयणि मज्झ समुहु विहि हुयउ संपइ ॥ करयलि चडिय ज सुहिण तुहुँ कज्जि पयत्तह सज्झि । ता दुडुगुसु कुदंतु हउं अच्छिसु भुवणह मज्झि ॥
[८४७]
इय अणंगिण तविउ मह अंगु निय-अंग-संगामइण निव्ववेसु पसयच्छि पसिउण । इयरी वि सु-सील-रुइ सगसगंतु वाउ व सु गणिउण ॥ निय-पिययमु गुण-रयण-निहि हियय-ट्ठिउ सुमरंत । चिट्ठइ अविरल-परिगलिर- नयण-सलिल झूरंत ॥ ८४४. १. क. भुवणाओ.
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