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नेमिनाहचरिउ
[८४०]
एत्थ - अंतरि - दइय नर-रयण
निक्कारण कारुणिय सुहड वग्ग-मुह-वन्न पसिउण । लहु रक्खहि नाह मई निज्जमाण एएण हरिउण || इय निसुतु वि-नणु अहह एहु मह पियह खोति । परिचिंतंतु पहावियउ करुण - वह समुहोति ॥
[८४१] एत्थ - अंतरि वाम अंगण
वामेण य लोयणिण
तह फुरंत - पडिकूल - पवणिण | दाहिणेण वाहरिउ रिद्धिण ॥
कंटय-तरु- सिर- गइण
अवसव्विहिं सयलिहिं वि अहि- पमुहिहिं असुह - जिएहिं ।
सूइय- भावि - अणत्थ-फलु
जीवित-कहहिं ॥
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[८४२ ]
तह विधाविरु तंमि गहणंमि
सव्वत्वकरुण-रखु संपत्तु असोय-तरुअनियंतउ पुणु निय-दइय विहलंघल-सव्वंगु लहु
विलवमाणु परियडिवि तत्थ वि । वरह मूलि सु वराउ कहमवि ॥ मुच्छ-निमीलिय अच्छ । पडिउ महीयलि हच्छु
[८४३]
अह कहें चि विपत्त- चेयण्णु
हुय गरुयर-दुह-विहरु सरिवि सरिवि निय-दइय-गुण-गणु वियलंत - विवेय- भरु भणइ - अहह ससि वयणि तुह विणु ॥ सुन्न-वसुंधर- गिरियडर्हि मई न सहारइ कोइ । इय एक्कसि पच्छिम-दसहं आविवि मह मुहु जोइ ॥
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