SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ नेमिनाहचरिउ [८४०] एत्थ - अंतरि - दइय नर-रयण निक्कारण कारुणिय सुहड वग्ग-मुह-वन्न पसिउण । लहु रक्खहि नाह मई निज्जमाण एएण हरिउण || इय निसुतु वि-नणु अहह एहु मह पियह खोति । परिचिंतंतु पहावियउ करुण - वह समुहोति ॥ [८४१] एत्थ - अंतरि वाम अंगण वामेण य लोयणिण तह फुरंत - पडिकूल - पवणिण | दाहिणेण वाहरिउ रिद्धिण ॥ कंटय-तरु- सिर- गइण अवसव्विहिं सयलिहिं वि अहि- पमुहिहिं असुह - जिएहिं । सूइय- भावि - अणत्थ-फलु जीवित-कहहिं ॥ Jain Education International 2010_05 [८४२ ] तह विधाविरु तंमि गहणंमि सव्वत्वकरुण-रखु संपत्तु असोय-तरुअनियंतउ पुणु निय-दइय विहलंघल-सव्वंगु लहु विलवमाणु परियडिवि तत्थ वि । वरह मूलि सु वराउ कहमवि ॥ मुच्छ-निमीलिय अच्छ । पडिउ महीयलि हच्छु [८४३] अह कहें चि विपत्त- चेयण्णु हुय गरुयर-दुह-विहरु सरिवि सरिवि निय-दइय-गुण-गणु वियलंत - विवेय- भरु भणइ - अहह ससि वयणि तुह विणु ॥ सुन्न-वसुंधर- गिरियडर्हि मई न सहारइ कोइ । इय एक्कसि पच्छिम-दसहं आविवि मह मुहु जोइ ॥ For Private & Personal Use Only [ ८४३ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy