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८३१]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[८२८]
ता समग्गु वि लोगु विलवंतु संपत्तु खयर पहुहु पुरउ कहइ कुमरावरद्धई । सयलस्सु वि नायरह जणह तस्सु घरि घरि पसिद्धई ॥ ता विज्जाहर-चक्कवइ नंदणु सदावेवि । रोसारुण लोयण-जुयलु भणइ करुण उब्भेवि ॥
[८२९]
अरिरि हय हय तुहुं मह मुक्ख किह एयहि निय-पयहि भइणि-माइ-साडिय-समाणहि । एवं-विह विसम दस जणिय-सुयण-संताव आणहि ।। अह व किमन्निहिं वहु-विहिहिं डंड-राडि-रडिएहि । अम्हिहि तुह अ-विणय सहिय गरुय-नेह-नडिएहिं ॥
[८३०] कालु एत्तिउ एण्हि पुणु हंत मह लोयण-गोयरह अवकमेसु तुरंतु अन्नह । निय-हस्थिहि सिक्ख हउं करिसु तुज्झ पसरिय-अवन्नह ॥ जो निय-भवणु न सारवइ न कुणइ वसि अप्पाणु । सो किह सयल-महीयलह करिहइ सिक्ख अयाणु ।
[८३१] - तयणु सयलह जणह मज्झम्मि किह जणइण धरिसियउ घिसि धिसि त्ति हउं इय विचिंतिरु । निय-पुरह अणंगरइ नीहरेइ परिभविण खिज्जिरु ॥ वंधु-सिणेहिण विहि-वसिण ताउ वि तभइणीउ । नीहरियाउ अणुप्पहिण गुरु-दुह तरु धरणीउ ॥ ८३१. ८. क. नौहरियाओ.
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