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नेमिनाहचरिउ तहा हि ॥
[८२४]
अत्थि एत्थ वि दीवि हिमवंतकुलसेलहं सन्निहिहिं धणय-जक्ख-पुरि-रिद्धि-तक्करु । बहु-विज्जा-वल-कलिय- खयर-राय-निउरंव-सुंदरु ! नयरु धणंजय-नामु तहि पसरिय-कित्ति-कलावु । खयराहियु सिरि-अमियगइ चिट्ठइ महुरालावु ॥
[८२५]
तस्सु पुणु मण-मत्त-मायंगआणालय-खंभ-सम विमल-सयल गुण-मणि-निहाणिय । अंतेउर-पवर-पिय अग्ग-महिसि भदाभिहाणिय ।। ताहं तहा-विहपुव्व-सुह- वसिण अणंगरई त्ति । अवितह नामिण विस्मयउ जायउ अंगरुहु त्ति ॥
[८२६]
तह महोदय-सिविण-उवइह दो जाय विलासवइ- कतिवइउ नामियउ कन्नउ । सयणेहि य अणुसरिस- वरह विरहि नउ कसु वि दिण्णउ ।। चिट्ठति य नहयर-उचिय.. कल अब्भासु कुणंत । दो-वि ति कन्नय गुरु-सविहि गउ वि कालु अ-मुणंत ॥
[८२७]
अवर-अवसरि गुरु-दुरायारजणयत्तिण जोव्वणह विहि-वसेण सयलम्मि तहिं पुरि । पर-तणिउ भोगवह वलिण हढिण अवहरइ पर-सिरि ॥ दुल्ललियहं गोट्ठिहि रमइ अवलोयइ स-वियारु । जण-मण तवइ अणंगरइ- नामु सु खयर-कुमारु ॥ ८२५. ४-५ repeated in क. ८२७. ३. क. पुरि.
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