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तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[८२०]
तयणु - किं इहु सरय-घण-खंडु कि व चंद-विमाण-दल गयण-गमिर-सुर-कंति-पसरु व । वण-देवय-मंदिर व वणि रमंत-हरि-दइय-निलउ व ।। दीसइ किंपि जयन्भहिउ इय पुणु पुणु चिंतंतु । जा सम्मुहु तमु संचलिउ विम्हय-हीरिज्जंतु ॥
[८२१]
ताव लोयण-सलिल-परिसित्तमुह कमल-थणावरणु करुण-राव-पूरिय-दियंतरु । सासाणल-परितविय - अहर-विवु मुहि-सयण-दुहयरु ।। उप्पाडिय-दाहिण चरणु तरुणि-जुयलु पेक्खेइ । चियह जलंतह सविहि गउ न य निमित्तु लक्खेइ ।।
[८२२]
अह तुरंतउ उत्तरेऊण गयणयलह चित्तगइ पुरउ गंतु तसु तरुणि-जुयलह । मिउ महुरिहिं अक्खरिहिं भणइ - तुम्ह को हेउ अ-सुहह । कि व एहु दीसइ धवलहरु कु व एहु चिय-वुत्तंतु । इय साहह जइ पुणु तयणु हउं वि करउं दुह-अंतु ।।
[८२३] __ता पयंपइ दीह-नीसासपरिसोसिय-अहर-दल वाल एग जह - किमिह साह । निय-मंदिर-दुच्चरिय- पयडणेण लज्जेमि तुह हउं॥ तह वि हु आयारिण कहिय भुवण-रयण नर-नाह । निसुणसु जिण तुह कहां हां निय-वुत्तंतु अणाह ॥ .
८२१. ९. न उ. ८२२. ६. क. भण.
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