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तइयभवि चित्तगहवुत्तंतु
[८१२]
तयणु किंचि वि पगइ-विलसंतउवरोह-सीलत्तणिण किंचि फुरिय-कोऊहलत्तिण । चक्काहिवु चित्तगइ गहिय-सार-परियणु पयत्तिण ॥ गंतु सयंवर-मंडवह तलि उवविठु पहिछ । अह अहर्हि वि नियंविणिहि मयणाउरिहिं सु दिद? ॥
[८१३]
निय-वियप्पिउ पुच्छमाणीए सिार-तरुणिहि पुरउ अह भणइ - सुयणु निमुणेसु अवहिय । जह जीवइ सो जिज जगि जसु रमेइ मइ धम्मि पर-हिय ॥ सुहिउ सु जो संतोस-रुइ सव्व-गु पुणु आगासु । मुह-कारणु जिण-धम्मु पर जगह वि पूरिय-आसु ॥
[८१४]
इय पिहुप्पिहु ताहं तरुणीण अट्टण्ह वि तहि सहह मज्झि पारु दरिसइ पइण्णह । ता खयराहिवह तसु विष्फुरंत-बहु-साहु-वन्नह ॥ वियरिय निय-निय धृय वियसिय-मुह-अरविंदेहि । हरिसूसिय-पुलयंचिइहिं सयलिहिं खयरिंदेहि ॥
[८१५]
अह महा-मह-पुव्वु परिणीय खयरिंदिण चित्तगइ- नामगेण तरुणीउ अट्ठ वि । तियसासुर-नहयरहं मज्झि जाउ इयरिण न दिह वि ॥ तयणतरु सिरि-चित्तगइ विज्जाहर-चक्किंदु । संतेउरु गुरु-खयर-निव- सेविय-पय-अरविंदु ॥
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