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________________ ८०७ ] तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु [८०४] मइ पपई - दक्खु सु-विवे परिविलसिर-गुरु-विणउ भव-काणण - भीरु-मणु जइ परि मई निज्जिणिवि कु-वि परिणेसह पायडिय निय [८०५ ] जिण - जंपिय-तत्त- रुइ अक्खो हिउ कामिणिहिं कंति पभणइ Jain Education International 2010_05 - सुमणस - सुहयर-गुण-जडिय जिम्व वच्छ-त्थलि पिययमह तसु घत्तहुं वर-माल || जणि सुयण- आणंद - वित्थरु | मग्ग-गामि अणहुत मच्छरु ॥ खयराहिवह कुमारु | गुरुय-सुकय- पब्भारु ॥ मुणिय-भव-भावु धम्म-कम्म-उज्जुत्त-माणसृ । खयर - कुमरु को विहु वियाण || सिंजिर- भमर-वस्त्राल । [८०६ ] मयणसिरि पुणु भणइ नणु जणय इह वीणा वायणिण लायणिण तरुणियणसिंगारिण पेसल झुणिण खयर- कुमारु जु को -वि मई सो स-समाण - रूविण भरइ नीसेस - खयरब्भहिउ सो अप्पमयह वि मह इय परिभाविव कु-त्रि जणय जोव्वणेण वरु रूव-रिद्धिण । छंद -रुइण ससि - विमल - बुद्धि || तुम्ह पयडु जिणिहेइ । मह पाणि गहेइ ॥ [८०७] जो विउव्विय सत्ति- जोगेण धरणि-गयण - अंतरु खद्धिण । चारु-चरिय-वर- कित्ति-लद्विण ॥ पुरि गtes पाणि । वरु घडि मन करि काणि ॥ For Private & Personal Use Only २०३ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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