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नेमिनाहचरिउ
[८०० [८००] तयणु पिहु पिहु विहिय-आयरहं वीवाह-विहि उद्दिसिवि नियय-जणणि-जणयाहं विहिहिं । सव्वाहिं वि वज्जरिउ तत्थ ताव इहु भणिउ पढमहिं ॥ कु जियइ कु सुहिउ सव्वगु कु जगह वि सुहु कु जणेइ । इय जो जाणइ नर-रयणु जणय सु मई परिणेइ ॥
[८०१] __ अह सरस्सइ भणइ नीसेसपासंडिय-समय-विहि- छंद-सह-साहिच्च-सत्थई । परमत्थु जु वज्जरइ तुम्ह सहह एयहं पसत्थहं ॥ धुवु निज्जिय-सुर-असुर-गुरु- मइ-माहप्प-विसेसु। सो पर होसइ पुरिसु पइ मह इह जम्मि न सेसु ॥
[८०२] रूव-जोवण्ण-विणय-लायण्णविलसंत समुल्लसिय- वंस-जाइ-सिंगार-सुंदरु । ससि-विमल-कलाहं निहि सिहरि-गरुय-गुण-रयण-मणहरु ॥ जो मई जिणिहइ निय-गुणिहिं कु-वि विज्जाहर-नाहु ।लच्छि पयंपइ-जणय मह तिण सहं करिह विवाहु ॥
[८०३] कित्ति जपइ - जणय-जणणीण जिण-नाहहं गुरुयणहं विणय-कम्म-कोसल्ल-सुंदरु । सरणागय-वच्छलउ स भुय-दंड-निज्जिय-पुरंदरु ॥ सस्ल-सहावु उदारु थिरु दुत्थिय-जण-साहारु ।
मज्झ चिरेण वि जणय तुहुँ इहु घडिज्ज भत्तारु । ८०२. ४. क. निहि. ८०३. १. क. जणय repeated.
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