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७७७ तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[७७४]
खसुहु खासह जरह अरुईए कर-कंपह रप्फयह गंडमाल-वाहीए सोसह । अरईए भगंदरह मूल-रुजह अन्नह वि दोसह ।। विहिउ विगिच्छ खणद्धिण वि करहुं देहु निरवज्जु । एहु सु-विणिच्छिवि मुणि वसह अम्ह वयणु पडिवज्जु ।
[७७५]
इय पयंपिर तियस पुणुरुत्तु पक्खंतरि परिभमिर भणिय साहु-वसहिण ति - साहह । किं वाहिर रोग अह अंतरा वि तुब्भे विसोहह ॥ तास-वियक्किय भणहिं सुर - नणु मुणि वाहिर रोग। फेडिवि अम्हि करहुं खणिण सयलि वि सज्जा लोग ॥
[७७६]
तयणु दाहिण-करिण परिमुसिवि निय-वामह करह नव- तरणि-किरण-दिप्पंत अंगुलि । उवदंसिवि तहं सुरहं पुरउ भणिउ मह-रिसिण - नणु सलि ॥ मह अंतर-रोगहं तणी एहि पुणु केत्तिय-मेत्तु । किं तु सहेवा पच्छह वि अज्जु ति सहउं निरुत्तु ॥
[७७७]
अह - महा-मुणि नृण जइ तुहं जि इह-अंतर-रोग-हरु इय भणंत चलणेसु निवडिवि । दु-वि साहहिं तियस सुर- पहु-पसंस अप्पाणु पय डिवि ॥ सणतुकुमार-महारिसिहि आसिव्वाउ गहेवि । सुर घरि गंतु सुर-पहुहु तव्वुत्तंतु कहेवि ॥ ७७५. ६. तो.
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