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नेमिनाहचरिउ
[७७०
इय दुरंतिहिं जीय-पज्जतसमयावह-दुहयरिहिं हुयहिं वहुहिं अन्निहिं वि वाहिहिं । सयलस्सु वि भुवण-यल- जणहु जणिय-गुरु-हियय-दाहिहि ॥ सुरगिरि-चूल व अविचलिर- माणसु सणतुकुमारु । चिट्ठइ अहियासंतु निरु सुमरंतउ नवकारु ॥
[७७१]
अह निरिक्खिय सु-मुणि-चरिएण अइ-विम्हिय-माणसिण भणिउ सहई सोहम्म-इंदिण । जह - पेक्खहु सुर-गणहु चरिउ चक्क-पहु-मुणि हि भाविण ।। जो छह-दुवालसम- पमुह-तविण विविहेण । सोसइ धम्म-सरीरु भव- भावुबिग्ग-मणेण ।।
[७७२] __न उण वाहिहिं विहुर-जय-जंतुववरोवण-कारिहिं वि वहु-विहाहिं पीडिज्जमाणु वि । सिक्कारु वि मुयइ न य उवयरेइ तणु भण्णमाणु वि ।। भुवणस्सु वि सारीरिइहिं वाहि-विसेस-हराहिं । उप्पन्नाहिं वि ओसहिहिं आमोसहि-पमुहाहि ॥
[७७३]
इय भणंतह तियसनाहस्सु मणि विम्हिय सयल सह गुण सुणेइ तसु निव-मुणिंदह । भुवणुत्तर-सुचरियह आससेण-कुल-गयण चंदह ॥ किं पुण ति जि पुव्वुत्त सुर दो-वि अ-सदहमाण । आगय राय-रिसिहि पुरउ वेज्ज-रूवु घरमाण ।
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