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तइयभवि चित्तद्दत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[७५८]
अह सि सि कम्म- परिणाभु
कु-वि दारुणु भुवणह वि चलु परियणु मणु अथिरु तणु पुणु एहु अणत्थ- फलु अ- वुह जणिय-पडिकम्म - विहि
[७५९]
जमिह एयह पढम - उप्पत्ति
ऊ त्रिविवेइ-जणपगईए वि निम्गुणउं कप्पूरागरु-मिगमयहं एहु सरीरु विणास यरु
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अइव तुच्छ संपय समग्गवि । सरय- अब्भ-सम दइय-संग वि ॥ सयलाइ हि निहाणु । वितह - रूव-अभिमाणु ॥
गरहणिज्जु उव्वेय-कारणु । नवहिं असुइ-विवरिहि बहु-भोगुवभोगाहं | दुह यरु निस्संगाहं ॥
[७६०]
सुक्क सोणिय- रुहिर-वस-मंस
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मज्जा सुइ-पूइ-रसनव-छिद्दु मलाविलउं इय जह जह परिचिंतियह तणुहु सुइत्तणु किंपि । तह तह दी सइ असुइमउ सयलु वि विवहेहिं पि ॥
मुत्त- अंत- पित्त-प्पला विउ
विहिण असुइ-दलिएहि घडाविउ ||
[७६१]
जाव अज्ज वि सयण साहीण
जा लच्छि न परिहरइ जा पिययम पिय-करिय जाव न जायइ विहुर-यरु ता कु-विकिज्जउ धम्म-विहि
दुहावणु ॥
जाव भियग वति वस-गय । जाव आण खंडहिं न अंगय ॥ तणु परिणाम असारु । पर भव-कय-साहारु ॥
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