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________________ ७६१] - तइयभवि चित्तद्दत्तंति सणतुकुमारचरिउ [७५८] अह सि सि कम्म- परिणाभु कु-वि दारुणु भुवणह वि चलु परियणु मणु अथिरु तणु पुणु एहु अणत्थ- फलु अ- वुह जणिय-पडिकम्म - विहि [७५९] जमिह एयह पढम - उप्पत्ति ऊ त्रिविवेइ-जणपगईए वि निम्गुणउं कप्पूरागरु-मिगमयहं एहु सरीरु विणास यरु - अइव तुच्छ संपय समग्गवि । सरय- अब्भ-सम दइय-संग वि ॥ सयलाइ हि निहाणु । वितह - रूव-अभिमाणु ॥ गरहणिज्जु उव्वेय-कारणु । नवहिं असुइ-विवरिहि बहु-भोगुवभोगाहं | दुह यरु निस्संगाहं ॥ [७६०] सुक्क सोणिय- रुहिर-वस-मंस Jain Education International 2010_05 मज्जा सुइ-पूइ-रसनव-छिद्दु मलाविलउं इय जह जह परिचिंतियह तणुहु सुइत्तणु किंपि । तह तह दी सइ असुइमउ सयलु वि विवहेहिं पि ॥ मुत्त- अंत- पित्त-प्पला विउ विहिण असुइ-दलिएहि घडाविउ || [७६१] जाव अज्ज वि सयण साहीण जा लच्छि न परिहरइ जा पिययम पिय-करिय जाव न जायइ विहुर-यरु ता कु-विकिज्जउ धम्म-विहि दुहावणु ॥ जाव भियग वति वस-गय । जाव आण खंडहिं न अंगय ॥ तणु परिणाम असारु । पर भव-कय-साहारु ॥ For Private & Personal Use Only १९१ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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