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७२९ ।
तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[७२६]
जेण पच्छिम-जम्मि किल जत्थ सुर-मंदिरि आसि तुहं गरुय-रिद्धि-वित्थरु पुरंदरु । सोहम्मि तर्हि पि इहु हुयउ एण्हि सुर-नियर-सुंदरु ॥ इय तुह गुरु-बंधव मइहिं कारावइ पडि वत्ति । तह मह मुहिण महायरिण तुम्ह पयासइ भत्ति ॥
[७२७]
इय सुणेविणु चक्कि परिओसवियसंत-वयणंबुरुहु कोसलीउ सयलु वि पडिच्छइ। वेसमणह पुणु पवरु स-सविहम्मि आसणु पयच्छ इ ॥ एत्थंतरि सुरु वेसमणु अभिओगिय-तियसेहिं । जोयण-महिहिं समुद्धरिय- रय-फयवर-तणएहिं ॥
[७२८]
वइर-मरगय-पुलय-वेरुलियससि-सूरकंत-प्पमुह पंच-वन्न-रयणिहिं विणिम्मिउ । निय-किरणिहि अवहरिय- तिमिरु रयण-पेढउं कराविउ । तदुवरि निरुवम-निय-महिम- निज्जिय-तियस-विमाणु । अहिसेयहं मंडवु विहिउ तिहुयण-सिरिहि निहाणु ॥
[७२९]
तस्सु अंतरि पुव्य-दिसि-समुहु सीहासणु संठविवि पायवीटु तहिं पुरउ ठाविवि । सु-मुहुत्तिण नर-रयणु पणय-पुव्वु आसणि निवेसिवि ।। अह खीरोय-महोयहिहि मणि-कंचण-कलसेहिं । आणेविवि निम्मलु सलिलु अभिओगिय-तियसेहिं ॥ ७२७. २. क. गंवुरुहुं. ५. क. ख. सविहिमि.
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