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७२१] तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[७१८]
इय-विचिंतिरु गरुय-चडयरिण कारेवि बद्धावणउं निय-पुरम्मि सयलम्मि निवइण । निय-रज्जि निवेसिउण कुमर-रयणु पसरंत-रिद्धिण । अणुजाणाविवि सुहि-सयण गुरुयण-भत्ति करेवि । चारय-बंध विमोइउण जिणवर सक्कारेवि ।।
[७१९]
कसु वि तारिस-गुरुहु पय-मूलि वहु-नरवइ-सुय-सहिउ स-दइओ वि विस्संभराहिवु । निसुणेविणु धम्म-कह हियइ धरिवि जिण-वयणु कय-सिवु ।। संसारिय-मुह-विरय-मणु पडिवज्जिवि चारित्तु । आससेणु सो राय-रिसि सु-गइहिं गयउ पवित्तु ।
[७२०
काल-जोगिण पुण सउण्णेहिं भरहेसर-चक्कवइ- विहिण सुहिण छक्खंड-वसुमइ उत्साहिय अणुकमिण परिस-सहस-कालम्मि अइगइ ॥ वहुविह-समर वसुंधरहं पसरिय-कित्ति-लएण । सणतुकुमारिण स-भुय-बल- पाविय-अब्भुदएण ॥
[७२१]
अह सुनंदा-नाम-थी-रयणपमुहाण जयभहिय- पिययमाण चउसटि-सहसहं । अच्चम्भुय-भुय-वलहं नरवईण वत्तीस-सहसह ॥ सिंधुर-तुरय-रहाहं पिहु पिहु चउरासी लक्ख । नव निहि चउदह रयण मण-इच्छिय-वियरण-दक्ख ॥ ५२१. ६. क. सहसह.
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