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७१३ ]
तइयभवि चित्तगइवुत्तति सणतुकुमारचरिउ
[७१०] अह तहाविह गुरुहुं पय-मूलि एहु गंतु चारित सेवइ । कुमर-वरिण पुणु अज्जु केम्वर || संलत्तउ एगति ।
विज्जाहर-चक्कवइ इय गच्छ कालु कु-वि अम्हहं पुरउ समग्गहं वि जह कीलण कर एह लहु मानस-सर-सामति ॥
[७११]
ता सुनंदा पमुह- दइया हिं
सारेण य परियरिण
जावागउ ताव नर
एत्थंतरि कयलीहरe उठेविणु नीहरइ कुरु
.
विहिय सेवु इह अज्जउत्तउ । रयण एत्थ तं पि हु पहुत्तउ ॥ वियसिय-मुह- अरविंदु | बंस गयण रयणिंदु ॥
[७१२]
तयणु दो विहु विहिय-तक्काल
जणिय-सयण-आणंद - वित्थर |
पाउग्ग-विहाण लहु पुवज्जिय-तियस - गिरि- तुंग-पुण्ण-पव्भार-सुंदर ||
भुवणमंतर - वित्थरिय
निम्मल-कित्ति-कलाव ।
सिरि-वेयइढ - महागिरिहिं गया ति सरल-सहाव ॥
[७१३]
ता विसेसिण खयर- सेणीसु
दोसुं पि सव्वायरिण पण मंतहं नहयरहं परिणेविणु नाणा - विहउ ae after farसिय-मुहिउ
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नियय आण अइरिण पयारिवि । उचिउ रज्ज-अहिसेउ कारिवि ॥ बिज्जाहर - कुमरीउ | घेष्पिणु अंतेउरी ॥
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