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तइयभवि चित्तगइवृत्तति सणंतुकुमारचरिउ
[६४६]
ता पसीउण तुम्हि नर-रयण रह-रयणि इहारुहह तुरिउ एत्थ-अंतरि पहुत्तय । खयरिंद ति बहु-वलिण चंडवेग-सिरिमाणुवेगय ॥ जाव यति वि कुमरेण सह सुह-दुह-कह अक्खित । अइवाहई तहिं काल कु-वि रण-रस-पुलइज्जंत ॥
[६४७] ___ ताप निमुणिवि तणय-वुत्तंतु साडोवु समुल्लसिय- रोसु जमु व तिहुयण-भयंकर । सदाविवि मंडलिय- सचिव-नियरु निय-रज्ज-सुंदरु ।। असणिवेगु पभणेइ – लहु चल्लहं संवहिऊण । अज्जु जिम्वेसहं सुय-वहय- कुमरह वलु मलिऊण ॥
[६४८]
ता पयंपिउ पवर-मंतीहि नणु नाह न सत्तु लहु इय मुणेवि अवगणियव्बउ । कु व एगु महावलह मह इमो त्ति न उवेहियव्वउ । वड्दतिण हुयवह-कणिण डज्झइ सयलु वि लोउ । किज्जइ सीहिण एगिण वि करि-घड-हणणि विणोउ ॥
[६४९]
धरणि-गोयरु एहु अहयं तु विज्जाहर-चक्क-पहु इय मुणेवि रिउ मावहीलह । कि न रामिण रावणु सु हरिण कंसु सु न नीउ पलयह ॥ इय वलवंतिहिं थिर-मणि हिं दिट्ठ-सत्तु-सत्तेहिं । सु वियारेवि विहेउ खमु रण-संरभु निवेहि ॥ ६४८. २. क. तणु. ६४९. ६. क. थिरगमणिहि.
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