________________
१६२
नेमिनाहचरिउ ।
[६४२
[६४२]
अह कुमारह सुकय-सयलब्भहिय-इच्छिय-अत्थ-कर पढिय-सिद्ध गुरु-कमुवणामिय । संझावलि-कामिणिहिं दिण्ण विज्ज पण्णत्ति-नामिय । तेण वि साहिय अइरिण वि उवएसिय-विहि-पुन्छ । विज्ज स पयडंतिण नियय- मणि उच्छाहु अउव्वु ॥
[६४३]
एत्थ अंतरि पहिण गयणस्सु सासाउल खुहिय-मण खयर-कुमर दो तत्थ आगय । पणमंति य आयरिण कुमर-वरह तसु पाय-पंकय ॥ तयणु कुमारिण भणिउ-किं एहु इय चितंतेण । नणु के कत्तु व कह व तुमि इह आगय वेगेण ॥
[६४४]
अह पयंपहिं खयर-नर-रयण वेयड्ढह गिरि-वरह विहिय-सिरिहि गंधव-नयरिहि । नाहेहिं खयराहिचिहिं चंडवेग-सिरिभाणुवेगिहि ॥ पेसिय अम्हि नियंगरुह एहु रह-रयणु गहेउ । चंदसेण-हरिचंद इय- नामय तुम्हहं हेउ ।
[६४५]
मुणिय-निहणिय-तणय-वुत्तंतु रोसारुण-नयण-दलु खयर-वलिण संछन्न-नह यलु । नाणाविह-समर-धर- पत्त-कित्ति जिय-पिसुण-मंडलु ॥ असणिवेग-अभिहाणु खयराहिवु गरुय-मर? । आगच्छंतु मुणेवि कय- नहयर-मण-संघटु ॥ ६४२. ३. क. सिद्ध गुरुकमुणामिय. ६४४. ५. क. 'भाणुविगिहि.
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org