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६४१]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[६३८]
अह समासिण निविड-नेहाए तहि सारय-ससि-मुहिहि पुव्व-उत्त कह सयल साहिय । ता पसरिय-हरिस-भर सा मयच्छि कुमरिण विवाहिय ॥ अह पाविय-चक्कि-स्सिरि व फुरिय-हरिस-वावारु । तीए सुनंदह कामिणि हि सविहि वइटु कुमार ॥
____ अरिरि ससहर तवहि तुहुं अज्जु मलयाणिल तुहुँ फुरहि लेहि पसरु सहयार तं पि हु। हलि कोइलि लवि तुहुं वि तुमि वि भमर झंकार पयडहु ॥ अरि अरि घट्ठय कुसुम-सर पुरिसु होहि तुहुं अज्जु । एह पाडेसइ सयलहं वि . तुम्हहं मत्थइ वज्जु ॥ .
[६४०]
तह सुलोयणि एहि जह तुज्झु क-वि अक्खउं वत्तडी इय भणंतु पविसेइ अंगह । जा ताव समुल्लसिय- रोस-पसर गयणयल-मग्गह ।। तसु खयरह कुमरिण हयह आयण्णिय-वुत्तंत । संझावलि-नामिय लहुय भइणि तत्थ संपत्त ॥
[६४१] किंतु कुमरह वयण-हरिणकअवलोयण-अमय-रस- सित्त झीण-तणु-कोह-यवह । मयणाणल-तविय-तणु हूय स जि सव्वंग-दुस्सह ॥ ता गंधव-विवाह-विहि अणुसरेवि परिणीय । कुमरिण संझावलि वि निय- वमुकय-सिण उवणीय ॥ ६३८. ६. ता पाविय. ६३९. २. क, ख, मलयाणल. ६४०. १. तुज्झ.
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