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६२२]
तइयभाव चित्तगइवुत्तात सणतुकुमारचरिउ
[६३०] अह वियासिय-वयण जा किंचि सा मुद्ध समुल्लवइ ताव दि8 हय-विहि-विसे सिण । रोसारुण-लोयणिण गयण-ठिइण तिण खयर-पुरिसिण ॥ अहह जियंतह फणिवइहि चूडामणि कु छिवेइ । कु व केसर पंचाणणह जग्गंतह वि गहेइ ।
[६३१] इय भणंतिण विरसु रसिरस्सु परिकंपिर-तणु-लयह संनिहीउ तमु तरुणि-रयणह । अवहरिउ कुमारु लहु अह मुएमि सुर-सिहरि-सिहरह ॥ तह जह पर-पिय-मण-जणिय- पावह फल पेक्खेवि । निहणु उवेइ हयासु इहु सय-सक्करउ हवेवि ॥
[६३२]
इय विचिंतिरु तुरिउ अलि-गवलदल-नीलिण नह-यलिण लग्गु गंतु सो पाव-नहयरु । जा ताव निरिक्खिउण कुमर-वरिण सरि सिहरि पुरवरु । गुरु लहु लहुयरु लहुयतमु उद्ध उद्ध गमिरेण । कह मई दिउ जाइसइ एहु इय चिंतंतेण ॥
[६३३]
हणिउ मुट्ठिण कुलिस-कठिणेण निस्संकु कवाल-तलि तयणु गलिर-रुहिर-च्छडाविल्लु । अदिय-पडिरविण भरिय-गयण-गिरि-धरणि-मंडलु । मुह-कंदरह विणिस्सरिय- दीहर-रसणा-सप्पु । कसु सोहग्गु न हुयउ लहु सो नहयरु गय-दप्पु ॥
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