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________________ १५८ कंद पह तह तसु वि विम्हारिय- तस्समय [६२६] अह सया-वि हु विसम-पगईए नेमिनाrafts मह मणहरणिय स ज्जि एह इय परिचितं तेण । साकुमरिण कामिणि भणिय विम्हिय-मण-पसरेण ॥ [६२७] चवि संभमु मुवि अवमाणु उज्जाणि कीच्ण-गयह ससि-मुहीए लज्जाउलत्तिण । उचिय - विहिहि रायाउर त्तिण ॥ विहिऊण पसाउ अणु जो तइयहं पयडियउ पसरिय- अणुरायाणलिण किन वियरस पसयच्छ तुहुं मह नेहह सव्व ॥ Jain Education International 2010_05 [६२८] किं न सुमरसि सुयणु जं नयर ६२६. ५. क विहि. ६२९. ९. क. ह. सरिवि राउ सो पुत्र - इंसिउ । उद्दिसेवित निय-वयंसिउ ॥ उवताविय अंगस्सु । इय भतिण तसु लज्ज- अहोमुहिहि उक्खे विणु भणिउ नणु चिंतामणि व अहन्न घरि तापसियसु अवलोयणिण निक्खेविय कमल-वरमह नेत्रत्थण सहिहिं सहुं आरंभिय-कीलाए । तह तह परिरंभणु विहिउ मह जि सु-वीसंभाए ॥ . मज्झ कंठि तई मयण - वुद्धिन । माल पूय कय भाव- सुद्धिण ॥ [६२९] कुमर- रयणेण वयण-कमल दाहिणिण हत्थिण | सुयणु लद्ध तुहुं मई कयत्थि ॥ दुलह इमम्मि वणम्मि । धरिवि सु णेहु मणम्मि ॥ For Private & Personal Use Only [ ६२६ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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