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तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[६२२] तयणु अविहिय-तणु-परित्ताण वहु-मंत-तंत-ण्णुइहिं कह कहिचि अइगमिय जामिणि । गोसम्मि उ तहिं जि गय मयण-भवणि हिययाहिरामिणि ।। न उण सु तारिसु सच्चविउ पयडीहुयउ अणंगु । तो सविसे सिय-दुहिहिं हउँ विहुरीहुय सव्वंगु ॥
[६२३] किंतु पयडीहूय-कंदप्पनेवस्थिण सहिहि तहिं तह कहिंचि तइयह विणोइय । जह अइरिण पुच्च-दिण- संभवाहं दोसहं वि मोइय ॥ तयणंतर पुणु अवहरिउ आससेण-निव-पुत्त । दुट्ठ-तुरंगिण ता खणिण भुवणु वि हुयउं दुहत्तु ॥
[६२४] हउं विसेसिण मुणिय-वुत्तंत . पसरंत-दुह-विहुर-तणु पत्त मुच्छ सहि-यणिण कहमति । निय निय-घरि अह परु जु किंपि तं तु न मुणेमि सयमपि । किं पुण केण-वि नहयरिण विलविर हरिवि विमुक्क । इह इय चिट्टर्ड मंकडि व नियह पलंवह चुक्क ॥
[६२५] सो उ संपइ कह वि अन्नत्थ खयराहमु गयउ इय
गोरि-देवि-पय-पउम-पणमिर । इह चिट्ठउं हउं जणय जणणि दिण्णु निय-दइउ मग्गिर ।।
अह विहसेवि स-ताल-रवु भणइ कुमरु - पसयच्छि । इहु सु मयणु हउं किं न नियसि समरसीह-निव-वच्छि ॥ ६२३. ३. क. विणाइय. ६२४. ४. क. पर. ८. मकडि. ६२५. ४. क. हउ missing
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