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________________ नेमिमाहचरिउ | [६०२] जमिह अम्हहं नियय दुहियाई विसम्म चिंताउरहं विहिय-विणय- पण मिर-सुरिंदिण | परिसाहिउ आसि सिरि- अच्चिमालि-नामिण मुर्णिदिण || जो अहरिes दप्प भरु जक्खह असियक्खस्तु । सोह धूयहं अहं वि हवि दउ अस् || १५२ ता कुमारिण तत्थेव य तक्खणि वि पसरंत अणुराय-रस अह कय- नव-परिणीय - विहि विरइय-कंकण-वधु | पविसइ रइ-मंदिर कुमरु हुय - नत्र वहु-संबंधु ॥ [६०४] गुरु- परिस्सम वसिण पुणु तस्सु रइ भवणि अइरेण वि [६०३] गरुय - विहवेण अट्ठ ताउ तरुणियण - सारिय | सोहमाण परिणिय कुमारिय || निद वहु समुवागय गोसि विहंगम-कुल- रविण तं पुरु सुपरियणु ताउ नव Jain Education International 2010_05 धरणि-नाह - लीलई पसुतह | तयणु सयण-सुहियण- विउत्तह ॥ पयडिय पडिवोहस्सु । । पिययम अ- नियंतस्सु ।। [६०५ ] सिविणु किं एहु किं व मइ-मोहु किं व जाय ं सच्चवउं इंदयालु किं व किण-वि दरिसिउ । दइय- विरह - दुहिओ वि हरिसिउ | जं पुव्व-सपुर-सयण आसि किंचि हउं अट्ठहिं वि दइयहिं सह परि मह सिरि कुसुमिय-तरुहु डालि व भग्ग संबंधि । अ-संधि ॥ For Private & Personal Use Only [ ६०२ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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