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________________ વર नेमिनाहचरिउ | [५२२] सुयणु वहुहिं विवाम- नयणाहिं निय सविहिहिं संठियहिं अइउण्डु चंदण - रसुव मुम्मुर अग्गि-विसेसयर करवालाउ वि तिक्खयर एहि पुणु एस त्ति परिचितिरिय Jain Education International 2010_05 आसि विरसु मह अमय-पाणुवि । तणु दाह करु मलय-पवणुवि ॥ रयणीयर-किरणा वि । मुत्ताहल-हारा वि ॥ [५२३] तुहु ति-जय-तिलयाए तणु-संगम - अमय-रस हउं मन्नउं परम- सुहता पसयच्छ सिणिद्ध-निय- दिट्टिण संभावेसु । मा तिल-तुस-तिभागिग वि महुवरि को करेसु ।। जहण-त्थल- थण-वयणसव्वंगालिंग करिवि कुमरिण चुंत्रिय वाल निरु पसर - सित्त पुव्वुत्तु सयलु वि । उ सेस - तरुणियण - वियल वि ।। [५२४] तयणु मह सहि सुहय- नेवत्थ अकय संक निय-अंकि ठाविवि । पाणि-फरिस मुहु परमु पाविवि ॥ सायरु लोयणि वामि । मयणुज्जीवण - धामि ॥ [५२५] एत्थ - अंतरि जणय-पासाउ तुरंत पवर-नरु जंपेइ य गुरु- हरिससूर-नराहिव - नंदणह हउं पेसिउ चिट्ठउं पुरउ कुमरह धरणिदेण ॥ ५२३. १. तुह. नाइदूर - देसम्म पत्तउ । रोम-राइ-रेहंत-गत्तउ || सविहि गहिर - सद्देण । For Private & Personal Use Only [ ५२२ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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