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વર
नेमिनाहचरिउ |
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सुयणु वहुहिं विवाम- नयणाहिं
निय सविहिहिं संठियहिं अइउण्डु चंदण - रसुव मुम्मुर अग्गि-विसेसयर करवालाउ वि तिक्खयर
एहि पुणु
एस त्ति परिचितिरिय
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आसि विरसु मह अमय-पाणुवि । तणु दाह करु मलय-पवणुवि ॥ रयणीयर-किरणा वि ।
मुत्ताहल-हारा वि ॥
[५२३]
तुहु ति-जय-तिलयाए
तणु-संगम - अमय-रस
हउं मन्नउं परम- सुहता पसयच्छ सिणिद्ध-निय- दिट्टिण संभावेसु । मा तिल-तुस-तिभागिग वि महुवरि को करेसु ।।
जहण-त्थल- थण-वयणसव्वंगालिंग करिवि कुमरिण चुंत्रिय वाल निरु
पसर - सित्त पुव्वुत्तु सयलु वि । उ सेस - तरुणियण - वियल वि ।।
[५२४]
तयणु मह सहि सुहय- नेवत्थ
अकय संक निय-अंकि ठाविवि । पाणि-फरिस मुहु परमु पाविवि ॥ सायरु लोयणि वामि । मयणुज्जीवण - धामि ॥
[५२५]
एत्थ - अंतरि जणय-पासाउ
तुरंत पवर-नरु जंपेइ य गुरु- हरिससूर-नराहिव - नंदणह हउं पेसिउ चिट्ठउं पुरउ कुमरह धरणिदेण ॥
५२३. १. तुह.
नाइदूर - देसम्म पत्तउ । रोम-राइ-रेहंत-गत्तउ || सविहि गहिर - सद्देण ।
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