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५१९] तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणंतुकुमारचरिउ
__ [५२६]
चोल-सिंहल-निवइ-नय-चलणु चेदीस-चिंता-रयणु जिय-कलिंग-वंगंग-नायगु । सिरि-लाड-नराहिवइ- विहिय-सेवु नय-इट-दायगु ॥ भोय-नराहिव-अंगरुहु कुमरह सेव-पवन्नु । अत्थि पहुत्तउ धवलहरि सेस-निवइ-मुह-वन्नु ॥*
[५२७] इय सुणेविण कुमरु नीहरइ कह कह वि कयलीहरह जाव ताव सु जि भोय-नंदणु । संपत्तउ संनिहिहिं. अह नमेवि तमु भुवण-मंडणु ॥ निज्जिय-रवि-रह-तुरय-रउ भुवणक्कमणि मुलोलु । निरुवम-लक्खणु पयड-अभिहाणु जलहिकल्लोलु॥
_ [५२८]
जो य अंगुल असिइ उस्सेहि परिणाहिण नवनवइ आयईए सउ अढ-उत्तरु । चउरं-गुल पुणु सवण जन्नु-खुरिय उवलद्ध-वित्थरु ॥ . बत्तीसुसिय-सिर-पवरु वीसइ-वाहुय-दंडु। सोलस-अंगुल-जंघ-जुउ गूढय-पट्ठि-वरंडु ॥
[५२९] मडह-तलिणय-सवणु चउरंसु वित्थिण्ण-निडालयलु कुडिल-कढिण-निम्मंस-वयणउ । थिर-पत्तल-नयणु निरु फुरुफुरंत-विलसंत-घोणउ । सुघडिय-सम-मणिवंधु तणु- उयरु सु-दीहर-जंघु । मुललिय-चमकिय-पुलिय-वर-वग्गिय-गइ-निविग्घु ॥
* At the end of st. 526 क. ख. read ग्रंथाग्रं १५००. ५२८. ६. क. वत्तीभूसियसिरयवरु. ५२९. १. क. समणु
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