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५१३ ] तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[५१०] सुयणु संपइ हुयउ अइ-कालु ता गम्मउ - इय सहिहिं भणिय मुद्ध सा देह-मेत्तिण । कह-कहमवि काणणह नियय-भवणि गय सुन्न-चित्तिण । ता संपाविय-अवसरिण विसम-सरिण सा वाल । आलिंगिय तह कह वि जह हुय तसु दस विगराल ।
[५११]
अह तुरंतिहिं सविह-गय-सहिहिं विरहाणल-पज्जलिर पढम-निसिहि उदियम्मि ससहरि । वायंतइ मलय-गिरि- पवणि कयइ तामरस-सत्थरि ॥ .. मणिमय कुटिम-तल-उवरि नेउ निवेसिय मुद्ध । अह दढयरु विरहिण तविय नं पलयाणलि छुद्ध ।
[५१२]
किं नु विरइउ एउ रवि-करिहि कि व उहिउ वाडवह किं व जणिउ कप्पंत-जलणिण । कि व निम्मिउ तडि-लयहं किं व विहिउ बज्जग्गि-पडणिण । सहयार-दम-मंजरिहिं संगिण खलियावेगु । मलयाणिल तणु-दाहयरु हुउ महु हरिय-विवेगु ॥
हुयउ मुम्मुर-मउ व तामरसदल-संचिउ सत्थरु वि चंद-किरण पुण सर विसेसहि। गोसीस-चंदण-रस वि अंगि लग्ग हुयवह व सोसहि ॥ इय विलवंतिय पुणु पुणु वि वियलिय-सयल-विवेय । उहिर विहसिर चंकमिर भणिय गोसि मई एय ॥ ५१०. ५. क. निय. ५१२. १ क. किन्नु.
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