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५०५] तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[५०२]
अह सु मित्तिण भणिउ - नणु नाह तहि चेवुज्जाण-वणि चलह कह-वि विहि वसिण जइ पुणु । सा पत्तिय हवइ निय- ख्व-विजिय-जय-तरुणि वर-तणु॥ ता पच्चूसि समुट्ठिउण मित्त-मेत्त-परिवारु । तरुणी-यण-दसण-तिसिउ गउ उज्जाणि कुमार ॥
[५०३]
तयणु - मयणह भवणु एहु तं जि सा चेव एह रयण-धर सु जि असोउ एहु महु सहोयरु । मलयाणिलु एहु सु जि आसि सविहि ससि-मुहिहि सुंदरु ॥ संपइ पुणु तमु वालियह दुसहइ हुयइ विओइ । पलयाणिलु वि विसेसवइ वंधव जोइ-न जोइ ।।
[५०४]
इय विसप्पिर-दीह-नीसासु परिविलसिर विरह-दुहु कुमरु करुणु विलवंतु मित्तिण । निय-अंग-परिप्फुरण- कहिय-कज्ज-सिद्धिण पसंतिण ॥ भणिउ - विसरसि नाह किह तुहुं पागय-पुरिसु व्य । जसु कज्जिण हउं उज्जमहुँ सयल-रयणि-दिवसु व्व ॥
[५०५]
ता पयच्छसु मज्झ आएसु पायालह महि-यलह नह-यलह व लीलई गहेविणु । निय-नायग-गाढ-गुण- गहिय-हियय अग्गइ करेविण ॥ सा लहु निय-पहु मण-रयण- तक्करि उवदंसेमि । अन्नह मज्झि वसुंधरह निय-नामु वि न बहेमि ॥ ५०३. ३ क. यसोउ. ५०५. ८. क. वसुंधरहं.
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