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तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[४७०]
तयणु पमुइउ निवइ हिययम्मि आणंदिय देवि मणि गरुय-हरिस हुय महिहिं सज्जण । परितोसिय वंदि-यण तुट्ट विवुह निरु डरिय दुज्जण ॥ अहव समग्गु वि धरणियलु भाविय-गुरु-उदएण । असरिमु हरिसु समुव्वहइ कुमर-नाम-सवणेण ॥
[४७२०
सिहरि-कंदरि हरि-किसोरु व्व अप्पडिहय-पय-पसरु पत्त-कित्ति अणुकमिण कुमरु वि । आणंदिय-सुहि-सयणु हणिय-पिसुण-मणु अह-वरिसु वि ॥ परिओसइ वीरहं हियय विहसइ मुहड-कहासु । निसुणइ पुरिसुत्तिम-चरिय निवसइ विउस-सहासु ॥
[४७२] अह नरिंदिण गरुय-रिद्धीए साणंदु सु कुमर-वरु सुप्पसत्थ-वासर-मुहुत्तिण । उवझायह सविहि परिमुक्कु तयणु मुपसन्न-चित्तिण ॥ पाविउ थोवेहि वि दिणिहिं असरिस-गुण-निलएण । पारि समग्ग-कलोयहिहि कुमरु कलायरिएण ।।
[४७३]
तयणु पुण्णिम-रयणि-रमणु व्व निय-जुण्हा-भर-भरिय- भुवण-विवरु निम्मल-कलालउ । गंभीरिम-रयणनिहि थिरिम-धरणि तुंगिम-विसालउ ॥ सेविज्जतउ सज्जणिहिं सलहिज्जंतु वुहे हिं । हुयउ जयस्सु समग्गह वि पयडउ नियय-गुणेहिं ॥ १५०. १. पमुइयउ. १७१. ७. सुहह.
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