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________________ ટ [४६६ ] अह नराहिव-वयणु. निसुवि नेमिनाrafts संतोसामय- वरिस उवइंसिर- पुलय-भरु हवउ हउ मह देव-गुरु- चलण-पसाइण एहु । जह जायहुँ इह-पर-भवि वि हउं वि सयल- सुह-गेहु || [४६७ ] तयणु नंदण - वयण - रयणिंदउवदंसण- मुह-ति सिय उवयाइय-सय-सहस आराहइ गुरुयण - चळण निय गन्भह निच्विग्घ - कए बहु-रक्खाउ करेइ || सित्त-गत्त-लइय व्व असरिसु । भइ साणुण देवि स-हरिसु ॥ [४६८] तयणु स-हरिसु धरणि-हरिणंक संपूरिय- दोहलय अह सयल - गुण महिईं पसवइ देवि समग्ग-गुण- लक्खण- रयण-निहाणु । भुवणादणु सुय-रयणु पयडिय - विहि-विण्णाणु ॥ गायंतिहिं गायणिहिं किज्जतिहिं मंगलिहिं सधराधर- धरणियल-जणदिण्णु नरिंदिण नंदणह ४६८, ४. क. ख. जन्मइि. Jain Education International 2010_05 देवि देr देवयहं विविहहं । कुणइ पूय जिण-पाय- परमहं ॥ ओसह - सई पिes | [४६९ ] अह पतिहिं भट्ट चहेहिं गमइ कमिण पडि पुन्न-वासर । दियहिं पत्त-गय-दोस - अवसर || - दिज्जमाणि दाणम्मि वंदिहिं । वज्जिरेर्हि वहु-तूर-विंदिहिं ॥ परम सुहाण निहाणु । सणतुकुमार भिहाणु ॥ ८. क. भवणा. For Private & Personal Use Only [ vFš www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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