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________________ ४६५] तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ [४६२] अह करेविणु विविह-पडिवत्ति निवु सिविण-विसारयह कहइ देवि-दिहाई सिविणइं। इयरे वि विणिच्छिउण नियय-सिविण-सत्थत्थु पभणई ॥ वाहत्तरि कहियाई इह सिविणइं सामन्नेण । तत्थ य तीस महा-सिमिण पवरई भणिय जणेण ॥ [४६३] तह वि चउद्दह सिविण सु-पसत्थ जिणनायग-चक्कवइ- जम्म-हेउ जायं ति धन्न । नर-नायग-भारियह भावि-सुगइ-सुक्खहं सउण्णहं । तेसि वि मज्झह सत्त चउ सिविणई हरि-मुसलीण । जम्मु कहहिं निव-भारियह मुह-कमलम्मि निलीण ॥ [४६४] सेस नरवइ-सचिव-सामंतसत्थाह-सेष्टि-प्पमुह पुरिस-रयण-जणणिउ विउज्झहि । एक्के सिविणउं णियवि पुव्व-उत्त-सिविणाण मज्झहि ॥ ता सामिय भुवणभिहिउ नंदणु को-वि विसिट्छ । होसइ सिविण-समूहु एहु जं तुह देविहिं दिदछु ।। [४६६] __ अह नराहिवु सम्मु एयं ति तं सिविण-विसारयह सयलु वयणु अग्भुवगमेविणु । पडिवत्ति अणेग-विह अह निउत्त-पुरिसिहिं करेविणु ॥ निय-निय-ठाणि अणुण्णवइ सिविण-विउस नीसेस । विउमुवइड पियह कहइ सिविणहं कह स-विसेस ॥ १६४. ८-९. क. Some letters are blurred. ४६५. ५. क. पुरिनिहि. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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