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नेमिनाहचरिउ [४५८]
इय परोप्पर दो वि साणंदु सद्धम्म-धम्मिय-कहहिं रयणि-सेसु सयलु वि गमावहिं । अह जायइ अरुणुदइ वंदि-विंद निव-भवणि आवहिं॥ मंगल-तूर-रवंतरिण उद्धीकय-करताल । जति य गहिर-ज्झुणिण एरिसु हरिस-विसाल ॥
[४५९]
उदय गिरिवर-सविह पत्तो वि नयणाणमगोयरु वि. अकय-तिव्व-स-पयाव-पसरु वि । गब्भागय-सुपुरिसु व अणवइण्ण-गुण-रयण-नियरु वि ॥ जगि पडिवक्खिय-पह हरइ पयडइ कमलाणंदु । तोसइ सव्वक्कई जणइ सुयण-हरिस नीसंदु ॥
[४६०]
तयणु देविहि सिविण-अणुरूवु नणु वंदिण भणिय इय गरुय-हरिसु चिंतितु नरवइ । स-निउत्तय-नरिहिं वहु- तुहि-दाणु वंदिहि दवावइ ।। अह सयणिज्जह उहिउण निम्मावइ सव्वाई। हरिस-वियासिय-मुहु निवइ. गोसिय-कायवाई ॥
[४६१]
तयणु सुंदरु करिवि सिंगारु आणंद-समुल्लसिय- रोम-राइ-रेहंत-विग्गहु । कुरु-वंस-मंडण-रयणु सहल-विहिय-निय-दार-स संगहु ।। सिविण-वियाणय नर नियय-पुरिसिहि सद्दावेइ । अह लहु सविहागयहं तहं आसणु वियरावेइ ॥ ४५९.८. तो सव्वक जगइ. ४६०.२. क. अगरूवु, क. मुह. ४६१. ७. क. पुरिसिहि; क. तह.
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